VIDEO : मुझको भी तो लिफ्ट करा दे

आपने अदनान सामी का अमिताभ बच्चन पर फिल्माया यह गाना ज़रूर सुना होगा… ऐसो वैसो को दिया है, कैसो कैसो को दिया है… मुझको भी तो लिफ्ट करा दे…
मैं अक्सर सोचती हूँ क्या कोई गाना जब लिखा जाता है तो वास्तव में उसका वही अर्थ होता है जिस उद्देश से लिखा गया है? यूं तो यह गाना रुपये पैसों और सोशल स्टेटस के लिए लिखा गया था लेकिन कल जब अचानक यह गाना कहीं सुनाई पड़ा तो मेरी सिक्स्थ सेन्स एकदम से एक्टिवेट हो गयी कि यार इस गाने को तो कहीं और भी फिट किया जा सकता है.
हम यदि जीवन के अंतिम उद्देश्य की बात ना भी करें तो रोज़मर्रा के जीवन में हमारे आसपास होने वाली घटनाओं में हमारी भूमिका क्या होती है? आप यदि ऑफिस जाते हैं और आपका कोई सहयोगी आपसे बेहतर काम करके नया प्रोजेक्ट हथिया लेता है तो आपको लगता है काश मैंने ज़र्रा सी मेहनत और कर ली होती तो आज यह प्रोजेक्ट मेरे हाथ होता.
आप यदि स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी हैं और आपका दोस्त आपसे बेहतर अंकों से पास होता है तो खुद भले न सोचे लेकिन माता पिता और घरवालों की तरफ से एक यह सुझाव ज़रूर आता है कि कर लेते ज़र्रा सी मेहनत और, आलसी कहीं के दिन भर मोबाइल में घुसे रहोगे तो कहाँ से लाओगे ज़्यादा नंबर…
यहाँ तक कि घर में यदि मेहमान आये हैं तो औरतें खाना परोसते हुए भी कई बार सोचती हैं अरे यार सोचा था पुलाव के साथ रायता भी बना लेती तो खाने का आनंद ही कुछ और होता, ज़र्रा सा जल्दी निपटा लेती काम तो समय मिल गया होता…
तो ये जो भाव है ना जो अक्सर आपको उकसाता रहता है कि ज़र्ररा सा और बेहतर कर लिया होता तो परिणाम भी बेहतर आते, लेकिन जब अगली बार वही मौका फिर आता है तब तक हमारा यह ज़र्रा सा वाला भाव थोड़ा और पीछे रह जाता है… तो हम आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन ज़र्रा सी अधिक मेहनत करने की ऊर्जा इकट्ठी नहीं कर पाते और फिर वही काम चलताऊ तरीका अपना कर उसी ढर्रे पर आ जाते हैं.
तो यह तो हो गयी एक आम समस्या… और यह उन लोगों के लिए है जो वाकई जीवन में कुछ बेहतर करना चाहते हैं… वर्ना मैंने यहाँ ऐसे लोगों को भी देखा है जो ज़रा सा आगे बढ़ना तो दूर दिन ब दिन यह सोचकर पीछे होते चले जाते हैं कि क्या करना जी अब तो पूरी उम्र निकल गयी अब तो बच्चों के करने के दिन हैं…
तो जो लोग वाकई कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी एक आदर्श छवि बना ले, यानी आप खुद अपने रोल मॉडल बनिए और उसमें वो सारी क्वालिटी देखिये जो आप किसी और में देखते हैं या खुद में वे सारे गुण होने की संभावना देखते हैं… और उसे अपनी वास्तविक छवि यानी अभी जो आप हैं उससे ज़र्रा सा ऊपर रखिये…
और फिर यह गाना गुनगुनाइए, ऐसो वैसो को दिया है, कैसो कैसो को दिया है… मुझको भी तो लिफ्ट करा दे… थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे….
आप जब अपने आसपास देखते होंगे तो आपको यह ख्याल एक बार तो ज़रूर आया होगा कि यार आखिर ऐसा क्या है इस बन्दे में कभी किसी की शक्ल को देखकर तो कभी किसी की अक्ल को देखकर… और यह भी ख़याल आया होगा कि मैं यह काम इससे बेहतर कर सकता हूँ… अगली बार जब चांस मिलेगा तो मैं यह काम इससे बेहतर करके दिखाऊंगा.
और यकीन मानिए जनाब वह अगला चांस आकर निकल भी जाएगा और आपको पता तक नहीं चलेगा, क्योंकि आप अगले बेहतर चांस के इंतज़ार में हाथ के जो छोटे मोटे काम है उसे उसी चलताऊ तरीके से कर रहे होते हैं. तो आपके हाथ में जो काम है उसे सबसे महत्वपूर्ण काम समझकर करिए, तो आपको अगले मौके का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा आपका हर काम सबसे बढ़िया काम होगा.
मेरे आध्यात्मिक गुरू श्री एम के बारे में आप में से कई लोगों ने मुझसे किस्से सुने होंगे. उनके गुरु ने जब उनको ढंग से सब्ज़ी काटने को लेकर यह कहा कि जो आदमी ढंग से सब्ज़ी नहीं काट सकता वह ढंग से ध्यान क्या करेगा और ढंग से मेरी कही हुई बाते क्या सीखेगा. मतलब आप जो काम कर रहे हैं उसे पूरी ऊर्जा लगाकर एकाग्रचित्त होकर करिए.
अब एक किस्सा और सुनिए श्री एम का, जब वे अपने गुरु के पास पहली बार कड़कड़ाती ठण्ड में हिमालय के पहाड़ों पर दीक्षा लेने गए थे तो उनके गुरू ने सुबह सुबह उठाकर कहा अपना टूथ ब्रश लाए हो? एक आध्यात्मिक गुरु जिनको वे बाबाजी बोलते थे, जिनके कई चमत्कारी किस्से उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखे हैं, वह आपसे यह नहीं पूछ रहे कि भाई वेद उपनिषद कितना पढ़े हो, ध्यान व्यान कितना जानते हो, पूछते हैं अपना टूथ ब्रश लाए हो? अगर लाए हो तो जाओ बाजू में जो नदी बह रही है वहां जाकर मुंह धो लो और इतने ठन्डे पानी से नहाने मत बैठ जाना वर्ना निमोनिया हो जाएगा. फिर हम ध्यान और ज्ञान की बातें करेंगे.
तो कहने का तात्पर्य यह है आधुनिक जीवन शैली के साथ भी आप अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं. दूसरा परिस्थितियों के अनुसार अपने दैनिक जीवन के क्रिया कलापों में ज़र्रा सा फेर बदल करके जो अधिक महत्वपूर्ण है उसे निपटाना आवश्यक है ना कि पूरा समय जीवन भर करते आये कामों को एक ही तरह दोहराते हुए पूरा जीवन निकाल देना. अपने आसपास नज़र दौड़ाइएगा आपको अस्सी प्रतिशत ऐसे ही कोल्हू के बैल की तरह अपनी ही जगह पर गोल गोल घूमते नज़र आएँगे, इस अतिशियोक्ति के लिए माफी चाहूंगी लेकिन वे अपने रोज़मर्रा के कामों में इतने परफेक्ट और पंक्चुअल होते हैं कि कभी आपकी घड़ी खराब हो जाए तो उनके टाइम टेबल के अनुसार आप अपनी घड़ी सेट कर सकते हैं.
अरे भाई बुरा मत मानिये, पंक्चुअल होना एक बहुत अच्छी बात है लेकिन आपकी पंक्चुअलिटी यदि दूसरे के कामों में अड़ंगा डाल रही है या आप खुद अपनी प्राथमिकताओं को तय नहीं कर पा रहे तो ऐसे नियम का क्या फायदा. आप देखिएगा यदि अनियमितता भी रोज़ रोज़ एक जैसी होने लगे तो वह भी एक तरह का नियम बन जाती है… इसलिए be spontaneous. सद्गुरु का एक वाक्य तो मैंने ब्रह्माण्ड के स्वर्णिम नियम की तरह रट लिया है, जब जैसा तब तैसा.
अब आप तुरंत कूद कर पूछेंगे हमें तो नियमों में बंधने को मन कर रही हैं, और खुद स्वर्णिम नियम की बात कर रही हैं. तो बस बस यही… आप सही समझे… यही तो समझाना चाह रही हूँ इतनी देर से… कि जब आप अपने भौतिक जीवन के नियमों के बंधनों को थोड़ा सा ढीला करना शुरू कर देते हैं तो आपके सामने ब्रह्माण्ड के स्वर्णिम नियमों के दरवाज़े खुलना शुरू हो जाते हैं… बात मैं कहीं से भी शुरू करूं जीवन के एकदम निकृष्ट भाव से लेकिन मैं आप ओगों को वहां पहुंचा ही देती हूँ जहाँ मुझे पहुँचाना होता है.
तो ऐसा कैसे संभव होता है, तो वो यूं कि जब मैं कहती हूँ कि आप अपनी एक आद्स्ढ़ छवि बनाकर उसे थोड़ी सी ऊंची जगह पर रख दीजिये और फिर खुद ही अपने रोल मॉडल बनकर वहां तक पहुँचने की कवायद शुरू कर दीजिये तो मैं अपने लिए भी तो वही नियम अपनाती हूँ ना… बातों की इतनी लम्बी चटाई बिछाकर मुझे कहाँ पहुंचना है यह मैंने पहले ही तय कर रखा होता है… उसे ज़र्रा सा ऊंचा रख देती हूँ और फिर बातों की सीढ़ी पर थोड़ा थोड़ा धक्का लगाकर वहां पहुँच ही जाती हूँ…. और यह तभी संभव होता है जब मैं अस्तित्व से कहती हूँ यार ऐसो वैसो को दिया है कैसो कैसो को दिया है, मुझ को भे तो लिफ्ट करा दे…
और जैसा कि मैं हमेशा कहती हूँ मैं ईश्वर की ज़रा सर चढ़ी संतान हूँ तो अपनी बात ऐसे वैसे कैसे भी करके मनवा ही लेती हूँ… तो आज हम जीवन की अनियमितताओं के साथ ब्रह्माण्ड के स्वर्णिम नियम तक… थोड़ा उछलकर पहुँच ही गए हैं, लेकिन अब यह स्वर्णिम नियम क्या hai यह भी तो जानना है ना, तो उसे मैंने थोड़ा सा और ऊंचा रख दिया… है. अगली बार हम वहां तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. तब तक आप यह गाना मेरे लिए गाइए कि ऐसो वैसो को दिया है कैसो कैसो को दिया है… मुझको भी तो लिफ्ट करा दे… थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे.
– माँ जीवन शैफाली