प्रकृति स्वयं बैठ चुकी है ड्राइविंग सीट पर

कभी कभी, प्रायः10-15 वर्षों में एक बार, ऐसा होता है कि अरब सागर की आर्द्र हवाएं अरावली के पश्चिम से होकर निकलती हैं।
तब ये कराची के ऊपर से होती हुई उत्तर पूर्व की तरफ बढ़ती है और थार के रेगिस्तान में बरसात करते हुए कराची, सक्खर, मुल्तान की तरफ कूच करती हैं।
इस बार फणि तूफान के कारण ऐसा ही योग बना है और पूरे देश से अलग, मारवाड़ और सिंध में झमाझम बरसातें हो रही हैं।
इन बादलों का रंग, गर्जन, हवा की सुगंध और उड़ती धूल का मिजाज़, सब कुछ निराला होता है। इनकी सृष्टि भगवान श्री कृष्ण ने मतंग मुनि के लिए की थी, ऐसी कथा है। मतंग ऋषि की कन्या, त्रिपुर सुंदरी का नाम तो सुना होगा!
प्राचीन काल में, जब सरस्वती नदी बहती थी और अरावली की ऊंचाई, वर्तमान से काफी अधिक थी, सिंधु और सरस्वती के दोआब में ऐसा ही मौसम रहा करता था, तब यह क्षेत्र अत्यंत समृद्ध, उपजाऊ और गोचारण के सर्वाधिक अनुकूल था। प्रसिद्ध डक भडली की भविष्यवाणी में वैशाख की बरसात को मृगों की प्यास बुझाने वाली बताया गया है।
वैशाख में बरसात होना, वरदान और अभिशाप दोनों है। प्रकृति के लिए वरदान और मनुष्य के लिए अभिशाप। इन दिनों कोई खेती नहीं करता, खुली ज़मीन होती है, गाएं जी भर कर चरती हैं, मक्खी मच्छर का प्रकोप भी नहीं होता है और गर्मी शान्त हो जाती है, साथ ही यदि जुलाई में अच्छी बरसात हो गई तो अनेक बहुमूल्य वनौषधियाँ भी उगेंगी, जिनका अस्तित्व बहुत ज़रूरी है।
खैर, राज्य सरकार ने गायों के लिए चारा डिपो इत्यादि से हाथ खड़े कर दिये हैं, भू माफियाओं ने गौचर दाब लिए हैं, किसान अब ऐसी फसलें उगाते हैं जिनका भूसा गायों के लिए उपयुक्त नहीं होता, नगरों में गाय पालना ही अपराध है, ऐसे में उनका बीज बचाने का दायित्व इंद्र भगवान ने संभाल लिया है।
वैशाख की बरसात भविष्य की बड़ी उथल पुथल का भी संकेत है। सावधान रहें, सतर्क रहें, धर्म का आचरण करें, रक्तपात वाले दृश्यों को देखकर न डरने वाला कलेजा विकसित करें।
प्रकृति स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठ चुकी है, समझने वाले समझ गए होंगे, जिनकी बुद्धि मलीन है और नहीं समझ पा रहे हैं, वे तप करें।
–केसरी सिंह सूर्यवंशी