नायिका – 23 : तीन शब्दों का जादू

उन तीन लफ़्ज़ों को लेकर घर लौटी… सिर दर्द का बहाना बनाकर औंधे मुंह लेटी रही… 2 घंटे निकल गये… शायद यकीन न आये तुमको लेकिन अपनी 33 साल की उम्र में हज़ारों बार ये शब्द कहे होंगे और सुने होंगे लेकिन ऐसा पहली बार हुअ कि मेरे कहने से पहले किसी ने पहली बार मुझे ये तीन जादुई लफ्ज़ कहे होंगे… सच्ची तुम्हरी कसम।।
उतावलापन, बचपना इतना भरा था कि सामने वाले को कभी मौका ही नहीं दिया पहल करने का। इस बार इतना सारा धैर्य न जाने कहाँ से आ गया था, अब भी है। जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरे पास फोन नंबर है और मैंने अभी तक फोन नहीं लगाया। इस बात पर तो सच में अचम्भित हूँ। कोई डर या अनिश्चिंतता हो ऐसा भी नहीं। बस लग रहा है जितना उतावलापन रिश्तों में दिखाया है उतनी ही जल्दी उन्हें खोया भी है। बस अब खोना नहीं चाहती। जो भी है, जितना भी है। संतुष्ट हूँ।
– नायिका
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंठ रख देना…
यकीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है।
– विनायक
मैं फोन नहीं लगाना चाहती। 18 जुलाई से आज 18 अगस्त हो गयी है, तो ये हाल है। फोन लगाया तो खरगोश की चाल चलने लगेंगे। अभी तो कछुआ भी बहुत तेज़ दौड़ रहा है। थोड़ा सा सांस लेने जितनी तो फुर्सत दो, अब तो हांफने लगी हूँ…
– नायिका
Anything for you Naayika…….. बोलो कितनी देर की फुर्सत चाहिए?
– विनायक
आपके इस ख़त से कुछ शब्दों को कम ज़्यादा कर दे तो ये सब मैंने ही कहा है……
लौटते समय कुछ लफ़्ज़ों को अपने साथ ले गयी थी, उसका बयान करूंगी… 22 अगस्त को अपने सिस्टम पर लौटूंगी, अभी किसी और के कम्प्यूटर से काम करने का आदेश आया है ऑफिस से, और बात मैं यहीं से कर पाती हूँ, घर से नहीं…. तब थोड़ा समय रहेगा… बहुत कुछ कहना है… जब समय था तो इतना था कि दो-दो ब्लॉग मैंन्टेन किये, आज समय की ज़रूरत है तो…. खैर… पीड़ा के क्षणों को जी रही हूँ… उसी शिद्दत से….
तिल हुआ करता था, बचपन से था… काफी बड़ा… पिछले तीन चार सालों से दिखाई नहीं दिया, अचानक गायब हो गया पता ही नहीं चला।
कोइ अश्चर्य की बात नहीं कि शनिवार की रात यही गाना सुन रही थी, चौंकना बंद कर दिय अब तो – कभी कभी मेरे दिल मे ख़याल आता है।
खुशवंत सिंह को बुलाकर रखा है पिछले महीने से, वो भी ओशो के साथ… बहुत मोटी किताब है, सोचो दोनों एक ही किताब में है, एक से बात करूंगी तो दूसरा रूठ जाएगा… ओशो से कई दिनों से बात नहीं कर रही… जब प्यार दिया तो बहुत दिया, जब परेशान किया तो बहुत किया… आजकल कट्टी कर रखी है उनसे…
उस माता के प्राचीन मंदिर में सिर झुकना वाजिब है, उसी से आशीर्वाद लेकर आयी थी तुमसे मुलाकातों के दौर के लिये.. कहकर आई थी, तुम जानों क्या करना है मुझे… मैं नहीं जानती…
याद है ना 10 अगस्त को बिजासन माता के मंदिर जाना हुआ था, और 15 अगस्त को तुमसे वो जादुई तीन शब्द सुनने को मिले थे…
आज ऑफिस की एक सखी को समय देना पड़ेगा, इसलिए लंच समय में तुमसे बात न कर सकूंगी… बहुत अपसेट है वह, माँ कहती है मुझे, न जाने कौन से जन्म का रिश्ता है अपने हाथों से खाना खिलाती हूँ उसे… उसका मैं नहीं जानती लेकिन मेरे भाव न जाने क्यों उस माता की तरह आते हैं जो अपने दूधमुहे बच्चे को स्तनपान के बाद संतुष्टि अनुभव करती है.
– नायिका
18 Aug 2008
प्रस्तुतकर्ता माँ जीवन शैफाली
(नोट : ये काल्पनिक नहीं वास्तविक प्रेम कहानी है, और ये संवाद 2008 में नायक और नायिका के बीच हुए ईमेल के आदान प्रदान से लिए गए हैं)
नायिका के इसके पूर्व के एपिसोड्स पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
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धन्यवाद माँ जीवन शैफाली