नायिका -4 : जादू और शक्ति

… कुछ बताऊँ?
तुम अब लगभग तैयार हो कि हम मिल सकें… लगभग पर रुकना, ध्यान देना…
उन 4 या 5 दिनों के ध्यान में बैठने का बहुत बड़ा हाथ है इस तैयारी में... अब बोलो, ये अगर पहले बता देता तो? तो ये अपेक्षा जुड़ जाती और उस तरीके से ध्यान सम्पन्न न हो पाता…
तुम कितना कसमसाती हो मेरी आधी-अधूरी बातों पर, मैं क्या समझता नहीं, पर मजबूर हूँ, समय से पूर्व जानकारी भी तो बाधा बन जाएगी… अब आया कुछ समझ में, मेरी समझदार?
अब सुनो, ये “लगभग” कैसे हटेगा और मैं तुम्हारे सामने खड़ा हो कर कह सकूंगा कि अब तुम, तुम नहीं… अब मैं, मैं नहीं… अब सिर्फ और सिर्फ हम… सिर्फ हम…. सिर्फ हम… हम… हम… हम… इस ज़मीं से आसमां तक…
खुद को और खुद के जादू को पहचानो… मेरे सम्मोहन को तोड़ो… जादू होता है, ये तो जान लिया, यक़ीन हो गया, बस मेरा काम पूरा हुआ, पिछले दो दिनों से सिर्फ तुम और तुम्हारा ही जादू चल रहा है और मैं तुमसे पूछ रहा हूँ कि क्या हुआ, क्या हुआ….
पर तुम ठहरी बुद्धू की बुद्धू… अब जो हो रहा है, जो होगा… वो तुम्हारा ही जादू है… अच्छे अच्छे शब्द देना तुम्हारी फितरत है… ये विशेषण ‘जादू’ भी तुमने ही दिया था…
मैं ठहरा आदिम, बीहड़, जंगली सो शक्ति कहता था… चाहो जो कह लो, पर जान लो खुद को… खुद ही वो शक्ति, वो जादू हो… जानना है, मानना नहीं.
4 – 5 दिनों के ध्यान का इतना असर? नहीं, बरसों के ध्यान का प्रभाव था ये… इन 4 – 5 दिनों में तो सिर्फ उन बीते दिनों की स्मृति जागी… अब आगे भी करो तो…
ये लेखन प्रतिभा, काव्य प्रतिभा, ये संगीत की समझ, ये विद्रोह… ये सब इस जन्म की कमाई है? तुम जन्मों जन्म की अतृप्त, कैसे खुद को भुला बैठी और जो तुम्हें हर जन्म में घेरे थे, वो तुम्हें इस जन्म में, तुम्हारी प्यास और अतृप्ति से अनभिज्ञ, तुम्हें भटकन बुलाते रहे…
और तुम… तुम जो मेरी हो… मेरी बुद्धू हो… खुद पर भरोसा न रख, उनके दिए नाम को सच मान बैठी… एक बार भी पलट कर जवाब नहीं दिया कि
‘आयेगा रे उड़ के मेरा हंस परदेसी…’
अब मुस्कुरा कर माफ़ कर दो सबको, बल्कि धन्यवाद दो कि उन्होंने, वो सब करने, कहने और लिखने पर मजबूर कर दिया जिसने मुझे आवाज़ दी वरना मैं ही तो था असली भटकन…
तुम तो फिर भी लिख रही थी, पर मैं तो कुछ भी नहीं कर रहा था, सिवाय प्रतीक्षा के… जो किया तुमने ही किया, भले ही अनजाने में… पर सोचो ज़रा, अगर न लिखती होती तो और पता नहीं कितने दिन या साल लग जाते मिलने में…
so therefore I salute you and accept that you are my boss..
मेरी बुद्धु सी समझदार
- तुम्हारा नायक
– प्रस्तुतकर्ता माँ जीवन शैफाली
(नोट : ये संवाद काल्पनिक नहीं वास्तविक नायक और नायिका के बीच उनके मिलने से पहले हुए ई-मेल का आदान प्रदान है, जिसे बिना किसी संपादन के ज्यों का त्यों रखा गया है)