कुछ तो लोग कहेंगे

आजकल की सबसे बड़ी बीमारी है – लोग क्या कहेंगे? यह वाक्य हमारे ज़हन में इस तरह रच बस गया है कि इसे निकालना नितांत हीं मुश्किल है।
आपने वह मशहूर कहानी ज़रूर सुनी होगी जिसमें बाप बेटे एक गधे के साथ सफर कर रहे होते हैं। लोगों के कहने पर कभी बाप गधे पर बैठा तो कभी बेटा। कभी दोनों एक साथ बैठे। फिर भी लोगों ने कहना नहीं छोड़ा।
अबकी बार बाप बेटे ने गधे को ही उठा लिया, पर लोगों ने अब भी कहना नहीं छोड़ा। इसलिए ज़िंदगी में आप जो करना चाहे कीजिए। यह मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे। लोग तो तब भी कहेंगे जब आप कुछ भी नहीं करेंगे। आप हाथ पर हाथ धरे बैठेंगे तो लोग आपको निठल्ला कहेंगे।
मेंढकों का दल बीच जंगल से गुज़र रहा था। उनमें से दो मेंढक कुएं में गिर गये। बाकी के मेंढक ऊपर से देखने लगे। वे कहने लगे तुम्हारा निकलना मुश्किल है। तुम्हारा प्रयास बेकार जाएगा।
दोनों मेंढक कुएं से निकलने के लिए उछलते रहे। एक मेंढक ने बाद में प्रयास करना छोड़ दिया। उसने कुएं में ही दम तोड़ दिया। दूसरा मेंढक प्रयास करता रहा। उसकी उछल कूद कामयाब रही। वह अंततः कुएं से निकलने में कामयाब रहा। कामयाब मेंढक बहरा था। वह अन्य मेंढकों की बात नहीं सुन पाया। इसलिए वह सफल हो पाया।
सफल होने के लिए बहरा होना ज़रूरी है। जिस मेंढक ने उनकी बातें सुनी। उसका हौसला पस्त हो गया। उसने प्रयास करना छोड़ दिया। इसलिए उसे मृत्यु का वरण करना पड़ा। हमें लोगों की बातों में नहीं आना चाहिए। हमें सबकी सुननी चाहिए, पर करनी अपने मन की चाहिए। इस फिल्मी गाने को हमेशा हृदयंगम रखना चाहिए – कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
फर्ज कीजिए कि आप किसी होटल में बैठे हैं। आप चाय पी रहे हैं। घर में आप चाय प्लेट में उड़ेल कर पीते हैं। बिस्किट चाय में डुबोकर खाते हैं, पर होटल में ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। कारण स्पष्ट है। आप सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे? लोग कुछ भी सोचें। आप अपने मन की कीजिए। मानिए वही जो मन भावे। जिस काम से आपको आनंद मिले, रस मिले वही काम करना चाहिए।
आप वह काम धड़ल्ले से कीजिए और सोचिए कि आपके उस काम को करने से लोग ये सोचेंगे कि वे अब तक उस काम को क्यों नहीं कर पाए थे? लोगों की सोचेंगे तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे।
आप अपने बच्चे को प्यार करें तो लोग कहेंगे बच्चे को सिर पर बिठा रखा है। बच्चे को डांट डपट करें तो भी लोग कहेंगे कि बच्चे के साथ सख्ती से पेश नहीं आना चाहिए। पत्नी की बात मानें तो आपको लोग जोरू का गुलाम कहेंगे और न मानी तो यही लोग आपको जुल्मी और गंवार कहेंगे। किसी तरह से भी लोग आपका गुज़ारा नहीं होने देंगे।
अच्छे दौर के संगती सभी होंगे, पर बुरे दौर का कोई भी नहीं होगा। लोगों के कहने की फिक्र कभी राम ने भी की थी। उन्होंने लोग क्या कहेंगे के चक्कर में सीता की अग्नि परीक्षा ली। लोग क्या कहेंगे की सोच में पड़कर अपनी गर्भवती पत्नी सीता का परित्याग किया। लव कुश को अपना पुत्र मानने से इंकार किया। नतीजा क्या निकला? सीता को धरती की गोद में प्राण त्यागना पड़ा। राम को सरयू नदी में डुबकर आत्म हत्या करनी पड़ी। आत्म हत्या के कारण जो भी रहे हों। उनमें से एक कारण आत्म ग्लानि भी रही होगी।
“लोग क्या कहेंगे” की सोच ने राम की भरी पूरी जिंदगी तबाह कर दी। राम सीता के वियोग से लोग उस समय भी दुःखी थे, आज भी दुःखी हैं और कल भी रहेंगे। आज भी हमारे पूर्वांचल में यह कहावत अक्सरहा कही जाती है –
सीता के दिन बने बने गइले।
राम के दिन वियोगे से गइले।
– Er S D Ojha