ME TOO अभियान और यौनेच्छा समर्थक त्रिअंकीय धाराएँ

समय महाभारत काल
स्थान – कुरुक्षेत्र के आस पास
बलराम से द्रौपदी ने पूछा – देव, मनुष्य की सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है।
बलराम ने उत्तर दिया – उसके खुद के किए गये पाप।
और यह खबर पहुँची कुरुक्षेत्र में जहाँ दुर्योधन और भीम का निर्णायक युद्ध चरम पर था। भीम जय की कोई भी युक्ति ढूँढ नहीं पा रहे थे। बज्रांग दुर्योधन पर गदा प्रहार निरर्थक साबित हो रहा था। युक्ति जानकर भी कृष्ण मौन थे शायद किसी कारण प्रतिज्ञाबद्ध थे।
खबर पाकर अर्जुन चिल्लाए – भैय्या, द्रौपदी का संकेत आया है। दुर्योधन का पाप ही उसकी कमज़ोरी है। और यह पापी सदैव वासना लोलुप रहा है। द्रौपदी पर भी इसकी कुत्सित दृष्टि रही है। इसका पाप यही है। इसलिए जंघाएँ ही इसके पाप का प्रतिमान हैं, तोड़ डालिए गदा से। इस बज्रांगदेही पापी की जंघाएँ जरूर कमज़ोर होंगी। और भीम के एक ही प्रहार ने दुर्योधन की दोनों जंघाएँ शरीर से पृथक कर दीं।
इस प्रकार मानवीय इतिहास का प्रथम जर, जमीन और नारी अस्मिता के नाम पर लड़ा जाने वाला धर्म युद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर हुआ।
मेरा उद्देश्य आपको महाभारत की याद ताजा करना नहीं था बल्कि सभ्य और संभ्रांत पुरुष वर्ग के द्वारा अनादरित ME TOO अभियान का समर्थन करना है। मैं द्रौपदी के कटाक्ष और शकुनि के षड्यंत्र का समर्थन नहीं करता पर नारी अपमान के एवज में भीषणतम दंड का उद्घोष जरूर करना चाहता हूँ।
जब ये सेक्स टॉयज नहीं बने थे उस समय भी संन्यासी के लिए काष्ठ निर्मित नारी से भी दूर रहना कितना उचित था यह बात अब हर एक अभिभावक और एक जागरूक पिता जरूर सोच सकता है। हम पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में यह भूल जाते हैं कि जहाँ पाश्चात्य समाज प्रगतिशीलता को विकास की कसौटी मानता है वहीं हम अपने पुत्र में पिता की छवि और बेटी में माँ का प्रतिबिम्ब देखकर फूले नहीं समाते या कहें कि परंपरा का निर्वहन ही हमारी प्रगति का मापदंड है।
पाश्चात्य संस्कृति के पुरोधा अपने पूर्वजों को बंदर तक ले जाते हैं जबकि हम ब्रह्मा को आदि मानकर अहं ब्रह्मास्मि की अनुभूति में असीम का अनुभव कर कृतार्थ होते हैं।
जहाँ आधुनिकता कानून की आड़ में रक्षित होने का दंभ भरती है वहीं हम अपने संस्कार और धर्म के समन्वय से सदाचारी समाज की नींव रखते हैं।
हम तो मानते हैं कि धर्म है तो हम हैं। धर्मो रक्षति रक्षितः।
कानून जहाँ बंद कमरे में दरवाजे की कुंडी तक नहीं खड़का सकता वहीं संस्कार युवा पुत्र को भी अपनी माता तथा पिता को युवा पुत्री से एकांत मे मिलने से रोकता है। हमारे संस्कृति हमें समझाती है ब्रह्मचर्याश्रम में गुरुपत्नी का दर्शन भी त्याज्य है और गुरु की शय्या का पदस्पर्श भी महा पातक है।
बालिकाओं की सहशिक्षा भी वर्जित थी और कारण आप सुधी पाठकों के लिए सहज अनुमेय है।
पौराणिक कथाओं ब्रह्मा का कामदेव के बाण के प्रभाव से अपनी दुहिता के प्रति आकर्षण, ययाति का पुत्र से जवानी लेकर राग रंग में डूबना, सीता के अन्वेषण क्रम में हनुमान का रावण के रनिवास में जाने से भी हिचकिचाना, नारद मोह आदि प्रकरण भले हीं काल्पनिक हों बुद्धिजीवियों की नजर में, पर इतना साबित करने के लिए काफी है कि बारिश में रेनकोट पहन कर बौराने से भले हीं रेनकोट आपको गीला होने से बचा ले पर फिसलन से लगने वाली चोट से तो बुलेट प्रुफ भी किसी को नहीं बचा सकता।
अस्सी के दशक में ट्रांजिस्टर बम, खिलौना बम और ब्रीफकेस बम के डर ट्रेन में भी उठाइगीरों ने भी लावारिस सामान को लपकना छोड़ दिया वहीं पर एड्स के डर से अवैध दैहिक तुष्टि पर अंकुश लगा था। वही लगाम अब यह ME Too अभियान लगा रहा है। कास्टिंग काउच और बॉस द्वारा अधीनस्था सहायिकाओं को सहज भोग्या मानने की सहज अवधारणा ध्वस्त होगी।
एक दो साल के बाद अपने कुकर्मों पर मिट्टी डालने वाली प्रवृत्ति तो विचारों में भी आकार लेने से पहले सौ बार सोचेगी। कुछ स्वयंभू चक्रवर्ती को अगर जेल की हवा खाने को मिली तो यह महज इत्तेफाक नहीं है। ME TOO की अवधारणा कहीं न कही न कहीं इन भग्नमनोरथाओं को कामलोलुपों के प्रति प्रतिघात का अवसर तथा अपेक्षित मनोबल तो उपलब्ध करवा ही रहा था ।
आज कल एक गजब फेसबुकीय अभियान चस्पा हो रहा है कि इतने दिन बाद क्यों? अच्छा है, बस किसी एक महिला से अपना सात्विक जुड़ाव बनाकर देखिए तो फिर नन न किसी फादर की सन जैसी उद्दंडता के खिलाफ आवाज की वजह प्रत्यक्ष हो उठेगी।
शक्तिशाली गगन के चंद्रमा के खिलाफ धरा की धूल का ऐलान ए जंग….. इतनी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है। है कि नहीं?
ये कौन सी मानवीयता है कि विलंबित न्याय की गुहार निलंबित कर दी जाए।
क्या रेणुका की चीख अगर परशुराम को देर से सुनाई दे तो उन्हें शत्रुपक्ष के नाश की प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए थी?
कौन सा आरोपी दूध का धुला दीखता है आपको? तो फिर विलंबित गुहार निलंबित न्याय की अधिकारिणी कैसे? बस इस कारण कि भोग्या की चीत्कार दशकों बाद पंचायत में गूँजी है!
वाह फिर तो अंग्रेजों को विभाजन और नेहरू को काश्मीरी मुद्दों से बरी कीजिए। मोनिका लेविंस्की पर राजद्रोह की तैयारी कीजिए। पामेला बोर्डेस का कोर्ट मार्शल कीजिए।
चाणक्य मानते हैं कि दलालों, रूपाजीवाओं और यौनतुष्टि अभिलाषियों को भी न्याय का हक है और अर्थशास्त्र में गणिकाध्यक्ष और मुगलकाल में चकलानवीस पद अस्तित्व में रहे तो आज क्यों नहीं बस इसलिए कि संस्कारों का घूंघट ओढ़ कर सत्ता में आई सरकार स्विमसूट के नाप दे रही है और 370 के बदले 377 + 497 का जोड़ सिखा रही है।
पर चिंता नहीं चिंतन कीजिए। सत्ता सदा बकरीद से पहले बकरे को सदर ए रिआसत भी बनाती है। बर्मा का यू थांट, रूस के गोर्वाचोव, मिस्र के बुतरोस घाली, पेरू के पेरेज द कुइयार, तिब्बत के दलाई लामा, भारत के कारगिल विजेता अटल, दक्षिण अफ्रीका के मंडेला और स्वेत प्रधानमंत्री, पाक की मलाला और हिंद के सत्यार्थी सब के सब शांति के नोबेल या अमरीका के दिखावटी प्यार के शिकार।
और क्यूँ भूल रहे है आपरेशन ब्लू स्टार के जैल सिंह….. नोबल शांति पुरस्कृत ओबामा, ईराक़, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में ओसामा फँसाऊ उम्दा फंदा… जंगल की लकड़ी कुल्हाड़ी की बेंट।
हे पीड़िताओं। आवाज उठाने के लिए आभार। देर के लिए दोषारोपण से मत घबड़ाएँ, ऊपर उठें। जो नुकसान हुआ वह तो अपूरणीय रहेगा पर आप का यह प्रयास आने वाले समय में बागबाँ के साए के बगैर भी कलियाँ के बेखौफ खिलने का आधार बनेगा।
या देवी सर्व भूतेषु …… संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
रिक्त स्थान को यथायोग्य शब्दों से भर लें क्योंकि दुर्गा सप्तशती में वर्णित सारे शब्द असमर्थता, निष्क्रियता, शांति और दया सूचक हीं हैं। प्रतिशोधात्मक शब्द छंद भंग कर रहे हैं और मूल शब्दों से अत्याचार का पोषण।
विनाशाय च दुष्कृताम्
– अंजन कुमार ठाकुर