प्रेम पत्र : तुम्हारी पीठ पर तिल है क्या?

तुम्हारी पीठ पर तिल है क्या?
ठीक वैसे जैसे तुम्हारे होठों के नीचे और गले के थोड़ा ऊपर दो तिल हैँ, उस तरह का कुछ है क्या? अगर है, तो मैँ न उस तिल पर उँगलियाँ रखकर वहाँ से लिखना शुरू करना चाहता हूँ।
मैँ उस तिल से शुरू करके तुम्हारे कटि तक लिख देना चाहता हूँ अपने प्रेम की सारी कविताएँ, सारा कुछ।
तुम्हें याद है मैंने कहा था एक बार कि “मैँ महादेव होना चाहता हूँ ताकि पी सकूँ तुम्हारे सारे दुखों को”।
मैँ इसे भी वहाँ लिखना चाहता हूँ।
“जब मैँ कुछ खूबसूरत लिखना चाहता हूँ न, तो मैँ तुम्हें लिख दिया करता हूँ” याद है न, ये लिखा था मैंने एक दिन, इसे भी मैँ अपनी उंगलियों से उकेर देना चाहता हूँ वहाँ पर।
मैँ वहाँ लिख देना चाहता हूँ कि “एक काम करो न, अपने पास के किसी अदालत में चल के अपनी सारी तकलीफ़ें मेरे नाम कर दो।”
मैँ वहाँ उकेरना चाहता हूँ अपने सपनों की वो दुनिया जो बहुत खूबसूरत है, जिसमेँ आपका आना होता है हर रोज़ मेरे, सिर्फ मेरे याद कर देने भर से।
अच्छा तुम्हें चाय बहुत पसंद है न, एक चाय का प्याला भी उकेर दूँगा मैँ वहाँ पर।
तोड़ने और अलग होने जैसे शब्दों से मैँ परहेज करने लगा हूँ थोड़ा, इसलिए तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ लाने की बात नहीं करूँगा, और न ही ये कहूँगा कि मैँ बनवा सकता हूँ ताज जैसा कुछ लेकिन इतना ज़रूर लिख दूँगा कि मैँ जो भी हूँ, जितना भी हूँ, सिर्फ़ तुम्हारा हूँ।
मैं जैसे बुलाता हूँ न रोज़ तुमको, पुचकी, मालकिन और पता नहीं कितने पागलपन भरे संबोधनों से, उन सबको भी वहीँ कहीँ लिख देना चाहता हूँ।
मैँ न वहाँ लिखना चाहता हूँ ग़ालिब की शायरी, मीर की ग़ज़ल, और कालिदास का अभिज्ञानशाकुंतलम, मेघदूतम, सूरदास के पद की वो पंक्ति “जैसे उड़ि जहाज को पंछी फिर जहाज को आवे” और हाँ मीरा की गाई वो पँक्ति “तुम घन वन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा, और चार्ल्स हानेल की लिखी वो लाइन भी जिसमें उन्होंने कहा है कि “प्रेम हासिल करने के लिए…… इसे अपने भीतर तब तक भरें, जब तक कि आप चुम्बक न हो जाएँ।” और इसके साथ ये भी कि “देखो मैँ भी बन गया हूँ न चुम्बक की तरह।”
और इन सबके नीचे मैँ लिख देना चाहता हूँ अपना नाम जैसे अमृता प्रीतम ने लिखा था।
अच्छा तुम्हारे पीठ पर तिल न भी हो न, तो रुको, मैँ चाँद से अर्जी करता हूँ कि वो बन जाए तुम्हारे पीठ का तिल एक रोज़ के लिए।
– राघव शंकर