बुज़ुर्गों का ध्यान रखने में भारत सबसे अंतिम नंबर पर!

ग्लोबल रिटायरमेंट इंडेक्स में 34 देशों में किये गये एक सर्वे में हमारा देश सबसे आखिरी नम्बर पर यानि कि 34वें नम्बर पर आया है। सेवानिवृत्त होने के बाद लोगों की दशा खराब हो जाती है।
बुज़ुर्गों की तरफ जो ध्यान देना चाहिए वो नहीं दिया जाता। सरकार और परिवार दोनों को इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है।
हमारे देश में ऐसे बुज़ुर्गों की संख्या बहुत कम है जिनके चेहरे पर रौनक हो, जो ऊर्जा से भरपूर हो और जो ज़िंदगी को भरपूर जीते हों। पूरी ज़िंदगी हाड़ तोड़ मेहनत की हो घर और परिवार के लिए खुद से बन पड़ता हो वो हरसंभव प्रयास किया हो, ऐसे लोग निजी ज़िंदगी में बिल्कुल अकेले पड़ गये हो ऐसा महसूस करते हैं।
विद्वान लोग भले ऐसा कहते हों कि उम्र के इस पड़ाव में भी मस्ती में रहना चाहिए, खुद को जो अच्छा लगे वो करना चाहिए, नये शौक बनाने चाहिए, पुराने मित्रों सहयोगीयों से मिलना जुलना चाहिए, जो इच्छाएं बाकी रह गयी हो उन्हें पूरा करना चाहिए, खुश रहने और होने की वजह ढूढना चाहिए, लेकिन हर बुजुर्ग ऐसा कर नहीं पाते।
कोई काम न हो, स्वास्थ्य सही न होना, परिवार के सदस्यों के पास बुजुर्गों के लिए समय न होना आदि ऐसी दिक्कते हैं जिनकी वजह से बुजुर्गों को अपना समय काटना मुश्किल हो जाता है जिससे अच्छे खासा बुजुर्ग व्यक्ति हताश हो जाते हैं।
वो लोग ऐसा महसूस करते हैं कि हमारा तो किसी को कोई ख्याल ही नहीं है। वो खुद को अपने ही परिवार पर बोझ समझने लगते हैं। पूरी जिंदगी जिंदादिली से जीने वाले ऐसे लोग अपने मन की बात किसी को कहते नहीं लेकिन अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद बुज़ुर्गों की हालत सबसे ज़्यादा खराब हो जाती है, काम के बोझ से मुक्त होने की खुशी कुछ दिन तो रहती है, उसके बाद यही प्रश्न उठता है कि अब क्या करें। बुजुर्ग महिलाएं फिर भी घर परिवार, नाती पोतों मे व्यस्त हो जाती हैं लेकिन पुरूष ऐसा नहीं कर पाते। जो लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं उन्हें फिर भी समस्या कम होती है, कुछ लोग सामाजिक गतिविधियों मे खुद को व्यस्त कर लेते हैं। किंतु जो लोग ऐसा करने में असमर्थ होते हैं उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
फ्रांस में नैटिक्सस नाम की एक कंपनी है। जो प्रत्येक वर्ष दुनिया के विभिन्न देशों मे सेवानिवृत्त लोगों के जीवन पर शोध करती है उसके आधार पर ग्लोबल रिटायरमेंट इंडेक्स तैयार करती है। विश्व के 34 देशों में जब ये सर्वे किया गया तो हमारे देश भारत का नंबर आखिरी यानि 34वां आया है।
ब्रिक्स के चार देश ब्राजील, रूस, भारत और चीन में भी हम सबसे पीछे हैं। इस वर्ष ही नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से हमारा नंबर आखिरी ही रहता आया है जो यह साबित करता है कि इतना विकास होने के बाद भी हम बुजुर्गों के मामले में वही के वही हैं। जबकि स्विट्जरलैंड, नार्वे, आइसलैंड इस सर्वे की सूची मे सबसे आगे हैं।
सेवानिवृत्त लोगों की दशा को परखने के लिए इस सर्वे में चार कटेगरी पर तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है जिसमें सबसे पहला है, material wellbeing. जिसका अर्थ है आराम से जीवन जीने की सुविधाएं कैसी हैं? इसमें 43 देशों में हमारे भारत का 41वां नंबर आया था जिसके बाद दूसरी कैटेगरी में स्वास्थ्य सेवा की बात आती है जिसमें भारत 43वें यानी आखिरी नंबर पर रह गया।
तीसरी कैटेगरी आर्थिक स्थिति के संदर्भ में हम 43 में से 39वें क्रम पर हैं इसमें थोड़ा आगे शायद इसलिए हैं कि हमारे देश में लोग सेवानिवृत्ति के बाद की अच्छी आर्थिक योजना बनाकर रखते हैं। हमारे देश में जहाँ बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य संबंधी और दवाइयों का खर्च एक बड़ी समस्या होती है, वहीं समृद्ध देशो में स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की तरफ से निशुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं। कुछ देश अपने यही बुजुर्गों को जीवनयापन के लिए पैन्शन भी देते हैं जिसके कारण वहाँ बुजुर्गों को आर्थिक चिंता कम होती है। चौथी कैटेगरी होती है गुणवत्ता पूर्ण जीवन यानी कि जीने के लिए साफ सुथरा वातावरण जिसमें भी हम आखिरी स्थान पर रहे हैं।
इन सभी बातों पर विचार किया जाए तो कहा जा सकता है कि भारत सेवानिवृत्ति के पश्चात रहने लायक देश नहीं है। यदि आपको ये सभी बातें सच नहीं लगतीं तो अपने आसपास के किसी सेवानिवृत्त बुजुर्ग से पूछ कर देखिए। हमारे यहाँ सड़कों की दशा भी ऐसी है कि बुजुर्ग अकेले बाहर निकलने मे डरते हैं। ट्रेफिक ज्यादा होने के कारण बुजुर्ग लोग वाहन चलाने के बचते हैं। कोई साथ ले जाए और छोड़ जाए तो ही बाहर जा सकते हैं। कुछ लोग अपवाद हो सकते है लेकिन ज्यादातर लोगों की यही दशा है।
सरकारों को बुजुर्ग नागरिकों के लिए जो सुविधाएं देनी चाहिए वे पर्याप्त नहीं होती। हमारी सरकारें ट्रेन और दूसरी सेवाओं में वरिष्ठ नागरिकों को थोड़ी सी छूट और प्राथमिकता देकर खानापूर्ति कर लेतीं हैं। हमारे यहाँ बाग बगीचे केवल बच्चों को ध्यान में रखकर ही बनाए जाते हैं। बुजुर्गों को जो मान सम्मान मिलना चाहिए वो भी कम मिलता है। केवल बस या ट्रेन में बुजुर्गों को बैठने की जगह देकर हम ये मान लेते हैं कि हमने हमारी जिम्मेदारी निभा ली। बुजुर्गों के साथ बातचीत करने वाला कोई नहीं होता।
केवल अपने देश में ही नहीं, विश्व के अधिकांश देशों में उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग और प्रचार की जो योजनाएं बनती हैं वो भी युवाओं को ध्यान मे रखकर बनाई जाती हैं। युवा वर्ग ही असली खरीदार हैं। युवाओं को क्या पसंद आता है इस ट्रेन्ड से ही सब तय होता है।
विज्ञापन, धारावाहिक हो या फिल्में सब युवा दर्शकों को ही केंद्र में रखकर बनाई जाती हैं।
परिवारों में भी अक्सर ऐसा होता है कि बुजुर्ग खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। आप को कुछ पता नहीं चलता, हमें हमारे हिसाब से करने दीजिये, हमारे मामले में दखल मत दीजिये ऐसी बातें कहने से बुजुर्गों को बहुत ठेस पहुँचती है। बुजुर्गों अपनी पुरानी मान्यताएं जिन पर वो इतना जीवन जीते आए हैं उन्हें छोड़ नहीं सकते उन्हें बदलने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।
आवश्यकता सिर्फ और सिर्फ इतनी है कि उन्हें ये एहसास करवाते रहिए कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं, आपको उनकी कितनी परवाह है और आप उनका कितना आदर करते हैं। खुद के आदर और सम्मान के सिवा उन्हें कुछ नहीं चाहिए होता। क्या हम उन्हें इतना भी नहीं दे सकते??
– गुजरात के प्रख्यात लेखक एवं दिव्य भास्कर के स्तंभकार कृष्णकांत उनडकट
– अनुवादक धनराज लखवानी
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