मर्द तांगेवाला

दो ऊंचे पहियों की एक खुली गाड़ी जिसे एक घोड़ा खींचता है, उसे तांगा या टमटम कहते हैं। इसे हांकने वाला आगे बैठता है और सवारियां पीछे। विश्व में जब पहिए का आविष्कार हुआ तो यातायात व सामान ढुलाई में सहूलियत हुई।
पहिए की जानकारी के बाद ही रथ, तांगा, बैलगाड़ी, ट्रेन,बस व कार बने। आकाश में उड़ने वाली जहाज भी उड़ने से पहले पहिए के सहारे जमीन पर दौड़ती है। पूरे विश्व में पहिए ने विकास की कहानी रची है। इसीलिए हमारे तिरंगे में पहिए को जगह दी गयी है। पहिए से बने टमटम का भारत में अत्यधिक महत्व था। इससे सवारी के साथ साथ असबाब भी आसानी से ले जाया जा सकता था। कभी लालू यादव ने भी एक हजार टमटम गाड़ियों को अपने चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल किया था।
जब जब घोड़े की मधुर टाप आपको संगीत में सुनायी पड़े तो आपको समझना चाहिए कि वह संगीत ओ पी नैय्यर का है। ओ पी नैय्यर ने “हौले हौले साजना, धीरे धीरे बालमा” और ” मांग के साथ तुम्हारा” जैसे कालजयी तांगा गीतों को सुमधुर संगीत प्रदान किया है। अमिताभ बच्चन का गाया गीत “मर्द तांगे वाला” या शोले की बसंती की साथ धर्मेंद्र का गाया गीत ” कोई हसीना जब रुठ जाती है” बहुत सुंदर बन पड़े हैं।
तांगे को यू पी बिहार में टमटम गाड़ी कहते हैं। आज भी भोजपुरी फिल्मों में इसे टमटम नाम से ही पुकारा जाता है। इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया की टमटम खास सवारी थी। इसीलिए इंग्लैण्ड में तांगे को विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है।
तांगे से सम्बंधित एक नवीन निश्चल और सायरा बानू अभिनीत फिल्म भी आई थी, जिसका नाम “विक्टोरिया नम्बर -203 ” था। सायरा बानू इसमें तांगा चलाती हुई दिखायी देती हैं । प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र अवस्थी जब जर्मनी गये थे तो वहां तांगे की खूब सवारी की थी। वहां तांगे को फिआकर कहते हैं। कभी तथाकथित संत आशाराम भी अजमेर की सड़कों पर तांगा चलाया करते थे।
भागलपुर में आज भी रामायण के मंचन से पहले सभी कलाकारों की झांकी टमटम पर ही निकलती है। बिहार के धार्मिक और ऐतिहासिक शहर राजगीर में आज भी टमटम का चलन है। राजगीर को पहले राजगृह के नाम से जाना जाता था। राजगीर कभी मगध की राजधानी हुआ करती थी। बाद में मौर्य शासक अजातशत्रु ने राजधानी राजगीर से पाटलिपुत्र शिफ्ट किया था। यहां (राजगीर ) आए पर्यटक टमटम की सवारी जरुर करते हैं। यहां तकरीबन 500 टमटम हैं, जो राजगीर घूमने का आन्नद द्विगुणित करते हैं। ये तांगे पर्यटकों के गाइड के तौर पर भी काम करते हैं। इन टमटमों के नाम भी फिल्मों के नाम पर रखे गये हैं। यथा – शाहंशाह, लाल बादशाह, मुकद्दर का सिकंदर और क्रांतिवीर आदि।
टमटम यातायात का एक सस्ता और सुलभ साधन हुआ करता था। पहले हर रेलवे व बस स्टेशन तांगों की चहल पहल से गुलज़ार रहा करते थे। इसीलिए इन स्टेशनों पर तांगा शेल्टर ( पड़ाव ) बने होते थे। अब ये शेल्टर सूने पड़े हैं। अब ये जुआरियों और नशेड़ियों के अड्डे बन गये हैं। सरकार इन्हें तुड़वा रही है और इनकी जगह दो पहिए वाहन, कार के पार्किंग ज़ोन बनाए जा रहे हैं। अब बड़ी मुश्किल से तांगे नजर आते हैं। तांगे का यह पेशा पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर है। आज आटो रिक्शा का ज़माना है। बाद के दिनों में टमटम कवियों गीतों में ही मौजूद रहेगा –
टमटम से झांको न रानी जी,
गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी।
जब आग उल्फत की लग जाएगी,
कहानी ये सारी बिगड़ जाएगी।
– Er S D Ojha
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