मणिकर्णिका

आज कंगना राणावत की बहु चर्चित फिल्म मणिकर्णिका देखी। यद्यपि आजकल ज्यादा फ़िल्में नहीं देखती हूँ, किन्तु अव्वल तो इस फिल्म के नाम ने ध्यान आकर्षित किया था, दूजा, हाल में इसका ट्रेलर देखा बस उसी वक़्त मन बन चुका था कि देखूंगी अवश्य ही।
राष्ट्रगान के साथ ही जब फिल्म शुरू होती है, मन अधिक प्रसन्न हो जाता है क्यूंकि कंगना ने अपने गुरु – सद्गुरु के लिए विशेष आभार प्रकट किया है और साथ अमिताभ बच्चन जी को भी क्योंकि कहानी की शुरुआत /अंत में झाँसी के इतिहास को उन्होंने अपनी दिव्य आवाज़ दी है।
यह फिल्म देखने जाने से पहले मैंने इसकी कोई भी जानकारी न ली थी जैसे कास्ट, निर्देशक, इत्यादि। सो काफी दिनों बाद स्क्रीन पर सुरेश ओबेरॉय, कुलभूषण खरबंदा और डैनी डेंज़ोंग्पा जैसे मंझे हुए कलाकारों को देखा तो बहुत ही अच्छा लगा। इन सभी की एक्टिंग (मुझे ऐसा लगता है) ऐसी होती है जैसे खुद को उस पात्र में ढाल लिया हो, इतनी सहजता से करते हैं अभिनय।
प्रसून जोशी जी द्वारा रचित यह कविता – “मैं रहूँ या ना रहूँ, भारत ये रहना चाहिए” – पूरे समय तक उतनी ही ज्वलंत रहती है जैसे फिल्म के शुरू में ही शुरुआत होती है और न केवल पूरे समय तक सिर्फ मणिकर्णिका के पात्र को ही नहीं, अपितु हर उस वीर की सार्थकता बनाए रखती है जो भारत की आज़ादी के लिए लड़े। यह रचना मद्धम गति की होते हुए भी असरदार उतनी ही है और मेरे विचार से हर एक दर्शक के मानस पटल पर अवश्य ही अंकित होती चली गई होगी।
और यहाँ पर एक और बात भी ज़हन में आती है जब सात 2018 में मोदी जी ने Central Hall Westminster, London में प्रसून जोशी जी को एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि “साहब, मैं रहूँ ना रहूँ, ये भारत रहना चाहिए”। (आज़ादी की लड़ाई उस वक़्त भी थी और आज़ादी की लड़ाई आज भी चल रही है कई मायनों में)…
ध्यातव्य है कि इस फिल्म में कुछ बातें ऐसी दिखाई गईं हैं जिससे हर उस भारतीय को अधिक आनंद होगा जिनके लिए भारत माता सर्वप्रथम है। जैसे – बाणभट्ट (जो संस्कृत भाषा के गद्य लेखक और कवि भी थे) द्वारा रचित ग्रन्थ – ‘हर्षचरितम’ का ज़िक्र दो बार आना; गौमाता और अंग्रेज़ों द्वारा उसका तिरस्कार करना; यह कुछ बातें ऐसी हैं फिल्म में जो यद्यपि यह 19वीं शताब्दी के उस दौर के सन्दर्भ में दिखाए गए हैं किन्तु आज तक समाज के उतने ही संवेदनशील मुद्दे हैं। आज भी संस्कृत भाषा को हमारे देश में (अब) वो दर्जा नहीं है जैसा कि अन्य देश, उदाहरणार्थ जर्मनी में जैसा है, और दूसरा गौमाता रक्षण हेतु आज भी उतने प्रयासों की आवश्यकता है जितनी कि उस वक़्त रही होगी।
और भी कई बातें जैसे कि एक डायलॉग – “…वो लड़ रहे हैं ताकि वो हम पर राज़ कर सकें, हम लड़ रहे हैं ताकि हम अपने पर नाज़ कर सकें…” – बहुत ही सशक्त डायलॉग है और आज के सन्दर्भ में उतनी ही सही भी।
सबसे ज्यादा अचंभित हुई मैं जब माँ काली को और ध्वज पर हनुमान जी का चित्र देखा.. अमूमन जल्द ऐसा देखने को मिलता नहीं हमारे बॉलीवुड के फिल्मों में.. यह बातें बहुत कुछ कहती हैं.. बहुत कुछ.. यह कोई छोटी बातें नहीं..
हमें “जागने की आवश्यकता है”…
कुल मिलाकर यह अवश्य ही कहना चाहूँगी कि यह फिल्म हर एक भारतीय को देखना चाहिए। अपने बच्चों को भी विशेषकर दिखलाया जाना चाहिए, उन्हें यह अवगत कराने के लिए कि आज़ादी के लिए हमारे वीर जैसे रानी लक्ष्मीबाई और भी कई अन्य कैसे अपने शूरवीरता दिखाए हैं और आज के भी परिप्रेक्ष्य में कैसे चरितार्थ है।
और अंत में मेरे लिए एक और आश्चर्य की बात दिखती है कि इसका निर्देशन राधा कृष्णा जगारलामुडी के अतिरिक्त स्वयं कंगना राणावत ने भी किया है, बेहतरीन निर्देशन।
जय हिन्द।
जय भारत।।
– मीनाक्षी करण