मानो या ना मानो : भैरव का आह्वान और प्रकटीकरण

गढ़वाल से होने के कारण ढोल दमाऊ हमारी संस्कृति की विशेषता है। देवी देवता आते हैं। मुझे कभी विश्वास नहीं रहा। कई हास्यास्पद कहानियां भी सुन रखी थीं और कई असली बात भी देख रखी थी।
मानव शरीर है। आभास नहीं हुआ तो नहीं हुआ। अपने विदेशी कुछ मित्रो के साथ गाँव जा रखा था। संयोगवश बीमार पड़ चुका था। रजाई ओढ़े नीचे के कमरे में लेटा था।
ऊपर मन्नाण (ढोल दमाऊ जिसमें देवी देवताओं का आवाहन पूजा होता है) शुरू हो गया। गुरुमूर्ति स्वयं ढोल हाथ में सम्हाले थे। मुझे माँ चन्द्रबदनी का सुनना बहुत अच्छा लगता है। सो बीमार होने पर भी ऊपर चला गया।
आंवले के पेड़ के नीचे ठिठुरता बैठ गया। ठंडा नहीं था पर बुखार से ठंडी सी लग रही थी। बहुत आनंद आया। विदेशी मित्र भी सुन रहे थे, आग जगी थी। वीडियो भी बन रहा था। जो वहां का नॉर्मल किस्सा है। जैसे श्री कृष्ण जी को बांसुरी अति प्रिय थी, वैसे गुरु महाराज को ढोल दमाऊ बहुत प्रिय है।
इसके बाद दूधिया नरसिंह से शुरू हुई वार्ता और भैरव का आह्वान हुआ।
मुझे पता नहीं क्या हुआ। उठकर खड़ा हो गया। रजाई साइड में रख दी। हाथों से जैसे चींटियाँ रेंगती हुई सी अंदर कोई और शक्ति घुसी जिसने पूरे शरीर पर अधिकार कर लिया। मेरे हाथ अपने आप व्याघ्र के पंजों की तरह ऊपर उठ रहे थे, जैसे जैसे वर्णन आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे मुख से सिंह की हुंकार निकल रही थी। जैसे कोई तड़प रहा है प्रकट होने को।
खूनी भैरव का वर्णन आते आते तो unconscious mind का ये हाल था कि सामने कोई पड़ जाए तो उसे कच्चा खा जाऊं, या चीर फाड़ कर फेंक दूँ। वो अनंत असीमित सत्ता का आभास था, शक्ति उन्मत्त स्वतंत्र नाचने को उन्मादित सी।
बंगाल के भैरव से चलकर बहुत सी बातें आती हैं। ऐसा बहुत कुछ उस वार्ता में था जो नॉर्मल दशा में पढ़ने पर समझ नहीं आता। पर एक एक वाक्य समझ आ रहा था उस दशा में और वैसे ही उत्तेजित होकर वो दशा बदल रहा था। जो भी हुआ।
विसर्जन के बाद ही शांत हुआ। मुझे नहीं पता था वो क्या था। वो वहीं तक सीमित नहीं रहा। स्विस में आने के बाद कालभैरवाष्टकम सुनते सुनते ही उग्र रूप से जाग्रत हो गया था। उस रात बहुत कुछ हुआ।
इसीलिए मैं फेसबुक के चक्करों में नहीं पड़ता। वो दुर्गा का भैरव है। पकड़ में तो आएगा नहीं। कहीं छूट छाट गया तो चपट कर जरूर आएगा। ऐसा कई बार हो चुका है। तो इसी कारण गुटबाजी से दूर रहता हूँ। बाकी आप लोग जाने दुर्गा भैरवादि को परिभाषित करने का मसला। अपना मामला नहीं है। दूरी बनाकर देखता हूँ। जो मेरे अपने साथ का बात है, वो कह सकता हूँ।
सदैव तत्पर है भैरव माई की सेवा में।
– संजय कोटियाल
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कालभैरव : समय से परे का एक आयाम
हम सब समय से बंधे हैं, समय है तो मृत्यु है। तो क्या हम समय से परे जा सकते हैं? अपनी मृत्यु को रोक सकते हैं?
सद्गुरु : मार्कण्डेय एक ऐसा बालक था जिसके लिए जन्म से पूर्व ही एक शर्त रखी गई थी। उसके माता-पिता को विकल्प दिया गया था कि वे अपने लिए एक ऐसे पुत्र का चुनाव कर सकते हैं जो या तो सौ साल तक जीने वाला मूर्ख हो या फिर केवल सोलह साल तक जीने वाला बेहद बुद्धिमान बालक हो।
माता-पिता समझदार थे, उन्होंने दूसरे विकल्प को चुना और एक होनहार और सक्षम बालक को पैदा किया, जो केवल सोलह साल जीने वाला था। जब दिन बीतने लगे तो उनके मन में यहीं चिंता आने लगी कि अब उन्हें पुत्र का वियोग सहना होगा। मौत का दिन पास आ रहा था। उन्होंने मार्कण्डेय को उस वरदान और चुनाव के बारे में बता दिया। पर मार्कण्डेय बहुत ज्ञानी थे।
जब मौत का क्षण पास आया और यमराज लेने आ गए तो मार्कण्डेय ने एक चालाकी की। वे कालभैरव नामक लिंग को थाम कर खड़े हो गए। जैसे ही उन्होंने लिंग को थामा, समय ठहर गया और मौत उन्हें छू नहीं सकी। यम को भी वहीं रुकना पड़ा।
मार्कण्डेय के भीतर चेतना का ऐसा आयाम खुल गया था जिसमें वे समय के लिए उपलब्ध नहीं थे। वे हमेशा पंद्रह साल के बच्चे के तौर पर जीते रहे और कभी सोलह साल के हुए ही नहीं। वे चेतना के उस आयाम में आ गए थे जिसे कालभैरव कहते हैं। समय के अस्तित्व से ही मौत का अस्तित्व है। कालभैरव ही चेतना का वह आयाम है जो समय से परे जा सकता है।
समय से परे जाना योग का एक आयाम है जिसमें आप भौतिक प्रकृति से परे जा सकते हैं। अगर आपका जीवन अनुभव ऐसा है कि आपका भौतिक से संबंध कम से कम है, तो समय आपके लिए कोई मायने नहीं रखता। जब आप भौतिक प्रकृति से अलग होते हैं तो समय आपको वश में नहीं कर पाता।
कालभैरव का अर्थ है, जिसने समय को जीत लिया हो। समय आपकी भौतिक प्रकृति का नतीजा है और आपकी भौतिक प्रकृति समय का नतीजा है। क्योंकि ब्रह्माण्ड में जो भी भौतिक है, वह प्राकृतिक तौर पर चक्रीय है। परमाणु से लेकर ब्रह्माण्ड तक, सब कुछ चक्रों में बंधा है। चक्रीय गति के बिना, भौतिकता की संभावना नहीं है।
अगर आप अपने भौतिक शरीर को एक खास स्तर की सहजता पर ले जाते हैं तो आप समय को वश में कर सकते हैं। अगर आपके और आपकी भौतिकता के बीच एक अंतर आ जाए तो समय का अनुभव आपके लिए नहीं रहेगा। तब हम कहेंगे कि आप कालभैरव हैं।
– सद्गुरु (साभार ईशा फाउंडेशन)